Advertisement

Advertisement
ऐप पर पढ़ें

यूपी हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि एचआईवी पॉजिटिव होने के आधार पर किसी व्यक्ति को प्रोन्नति से इनकार करना लोक नियोजन में समानता के अधिकार व जीवन की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि सीआरपीएफ का एचआईवी पॉजिटिव जवान भी सामान्य जवानों की तरह प्रोन्नति का बराबर का हकदार है। इन टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने उन सभी आदेशों को खारिज कर दिया जो अपीलार्थी की प्रोन्नति के खिलाफ थे।

यह निर्णय न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने सीआरपीएफ में कांस्टेबल पद पर तैनात एक जवान की विशेष अपील को मंजूर करते हुए पारित किया। उक्त अपील में अपीलार्थी ने एकल पीठ के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें प्रोन्नति की मांग वाली उसकी याचिका को खारिज कर दिया गया था। न्यायालय ने पाया कि अपीलार्थी की केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल में 28 अगस्त 1993 को कांस्टेबल के पद पर भर्ती हुई थी, वर्ष 2008 में उसके एचआईवी पॉजिटिव होने का पता चला। 

व्यापारी ने पार की क्रूरता की सारी हदें, चार कुत्तों को जहर जबकि दो को पेट्रोल डालकर मार डाला

हालांकि वर्ष 2013 की प्रोन्नति सूची में उसे भी स्थान दिया गया लेकिन इसी वर्ष हुए दूसरे मेडिकल परीक्षण में उसे मेडिकल कैटेगरी में रखे जाने के कारण उसका नाम प्रोन्नति सूची से निकाल दिया गया। उस वक्त जवान अमेठी में तैनात था। न्यायालय ने मामले के सभी पहलुओं पर सुनवाई के उपरांत पारित अपने निर्णय में कहा कि भारत में किसी के भी साथ उसके एचआईवी पॉजिटिव होने के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि सीआरपीएफ के स्टैन्डिंग ऑर्डर भी एचआईवी पॉजिटिव कर्मियों को बराबरी का अधिकार दिए जाने की बात कहते हैं। 

न्यायालय ने आगे कहा कि एचआईवी अथवा एड्स मरीजों को हर जगह समानता का अधिकार है और उनके साथ एचआईवी अथवा एड्स स्टेटस के कारण भेदभाव नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि वर्तमान मामले में 2013 के मेडिकल कंडीशन के साथ अपीलार्थी कांस्टेबल के पद पर नौकरी कर रहा है और उसे ड्यूटी के लिए फिट भी पाया गया है लिहाजा ऐसा कोई कारण नहीं है कि अपीलार्थी को प्रोन्नति न दी जा सके।

Source link

Advertisement