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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से सटा गाजीपुर जिले में पिछले लोकसभा चुनाव ही नहीं उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को तगड़ा झटका लगा था। मनोज सिन्हा जैसे कद्दावर नेता को यहां हार का सामना करना पड़ा था। यह हार भी तब हुई जब मनोज सिन्हा केंद्रीय मंत्री रहे और गाजीपुर में विकास के तमाम कार्य उनके ही कारण हुए। मनोज सिन्हा ने गाजीपुर ही नहीं आसपास के जिलों में भी रेलवे से जुड़े तमाम विकास के काम कराए। भाजपा ने इस सीट को अगले चुनाव में जीतने को लेकर गंभीर प्रयास अभी से शुरू कर दिए हैं।

यही कारण है कि भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मिशन 2024 के लिए यूपी में अपने अभियान की शुरुआत गाजीपुर से ही की है। लोगों का कहना है कि पिछले चुनाव में विकास बनाम जाति की जंग हुई और जाति इसमें जीत गई। हालांकि मनोज सिन्हा और यहां से जीते अफजाल अंसारी दोनों का इसे लेकर अलग अलग ही तर्क है। मनोज सिन्हा ने कहा कि उन्हें सभी वर्गों और जातियों का वोट मिला है। जबकि अफजाल का कहना है कि यहां विकास का केवल ढिंढोरा पीटा गया था। 

अब मनोज सिन्हा कश्मीर के उपराज्यपाल बन गए हैं और अफजाल अंसारी को गैंगस्टर के मामले में सजा के कारण यहां से अयोग्य घोषित किया जा चुका है। ऐसे में अगले चुनाव में दोनों के ही मैदान में उतरने की संभावना नहीं के बराबर है। ऐसे में अगले चुनाव में लोगों को नए प्रत्याशियों में से अपना सांसद चुनना होगा। 

जातीय समीकरण ही भाजपा की चुनौती 

पिछले चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी अफजाल अंसारी ने भाजपा के मनोज सिन्हा को हराया था। इस हार के पीछे जातीय समीकरण को कारण बताया गया था। पूर्वांचल के बाहुबली माफिया मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल 2004 से 2009 तक पहले भी यहां से सांसद रह चुके हैं। इसी तरह मनोज सिन्हा भी दो बार सांसद रह चुके थे। 

इस सीट पर सर्वाधिक संख्या यादव मतदाताओं की है और उनके बाद दलित एवं मुस्लिम मतदाता हैं। यादव, दलित और मुस्लिम मतदाताओं की कुल संख्या गाजीपुर संसदीय सीट की कुल मतदाताओं की संख्या की लगभग आधी है। यही कारण रहा कि मनोज सिन्हा पर अफजाल अंसारी भारी पड़ गए थे। 

इसके अलावा यादव बहुल सीटों पर भाजपा की जीत में सवर्ण वोटरों के साथ कुशवाहा वोटरों के जुड़ने के कारण होती रही है। लेकिन यहां कुशवाहा समाज पिछली बार कांग्रेस प्रत्याशी अजीत कुशवाहा के साथ चला गया था। कुशवाहा समाज की आबादी यहां ढाई लाख से अधिक है। इसके अलावा डेढ़ लाख से अधिक बिंद, करीब पौने दो लाख राजपूत और लगभग एक लाख वैश्य हैं। 

भाजपा को पहले उम्मीद थी कि अफजाल अंसारी के बसपा का उम्मीदवार होने से यादव मतदाताओं का एक हिस्सा मनोज सिन्हा की तरफ हो सकता है क्योंकि अखिलेश और अंसारी बंधुओं के बीच रिश्ते अच्छे नहीं माने जाते रहे हैं। लेकिन रिजल्ट आया तो ऐसा कुछ नहीं दिखाई दिया था। 

विधानसभा की पांचों सीटों पर हारी भाजपा

गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें है। पिछले विधानसभा चुनाव में सपा और ओपी राजभर की सुभासपा ने गठबंधन किया था। सभी पांच सीटों पर भाजपा और उसके सहयोगियों को हार मिली और सपा-सुभासपा ने सभी सीटें जीत ली थीं। जखनियां सीट पर सुभासपा के त्रिवेणी राम ने जीत हासिल की थी। सैदपुर सीट पर सपा के अंकित भारती, ग़ाज़ीपुर सदर सीट पर सपा के जय किशन, जंगीपुर में सपा के वीरेंद्र यादव और जमानिया सीट पर सपा के ही ओमप्रकाश सिंह विधायक चुने गए थे।

तीसरी बार कोई नहीं बना सांसद

गाजीपुर लोकसभा सीट पर पहला चुनाव 1952 में हुआ। कांग्रेस के हर प्रसाद सिंह यहां से सांसद चुने गए। अगले लोकसभा चुनाव में उनकी सीट बरकरार रही। 1962 कांग्रेस के ही वीएस गहमरी ने सीट जीती। अगले चुनाव में यह सीट कांग्रेस के हाथ से निकल गई। 1967 और 1971 में लगातार दो बार भाकपा के सरजू पांडे सांसद चुने गए। इमरजेंसी के बाद हुए 1977 के चुनाव में यह सीट जनता पार्टी के पास चली गई। जनता पार्टी के गौरी शंकर राय सांसद चुने गए। 1980 में कांग्रेस ने वापसी की औऱ उसके प्रत्याशी जैनुल बशर सांसद बने।

1984 में जैनुल बशर दोबारा सांसद चुने गए। 1989 में निर्देल प्रत्याशी जगदीश कुशवाहा ने सीट जीती। 1991 में भाकपा के विश्वनाथ शास्त्री ने सीट जीती। 1996 भाजपा के मनोज सिन्हा पहली बार सांसद बने। 1998 में सपा के ओमप्रकाश सिंह और 1999 में दोबारा भाजपा के मनोज सिन्हा सांसद चुने गए। 2004 में सपा के टिकट पर अफजाल अंसारी सांसद बने।

अगले चुनाव में सपा ने राधे मोहन सिंह को उतारा औऱ वह सांसद बने। मोदी की लहर में भाजपा के मनोज सिन्हा ने वापसी की। अगले चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन के आगे मनोज सिन्हा को हार का सामना करना पड़ा। बसपा के अफजल अंसारी से मनोज सिन्हा हार गए।

सपा-बसपा गठबंधन ने मनोज सिन्हा की लीड खत्म की

2014 के चुनाव में भाजपा के मनोज सिन्हा करीब 33 हजार वोटों से जीतकर सांसद चुने गए थे। लेकिन 2019 में सपा-बसपा गठबंधन से न सिर्फ उनकी 33 हजार वोटों की लीड खत्म हो गई बल्कि वह करीब सवा लाख वोटों से पिछड़ भी गए। 2014 में मनोज सिन्हा को 3,06,929 वोट मिले थे। उनके खिलाफ मैदान में उतरीं सपा की शिवकन्या कुशवाहा को 2,74,477 वोट ही हासिल हुए थे। बसपा के कैलाश नाथ सिंह यादव 2,41,645 वोट पाकर तीसरे स्थान पर थे।

2019 में सपा-बसपा के मिलने से उसके वोटों की संख्या भी मिल गई। इससे सपा बसपा के संयुक्त प्रत्याशी अफजाल अंसारी को 5,66,082 वोट हासिल हो गए। मनोज सिन्हा पिछली बार से  करीब डेढ़ लाख ज्यादा 4,46,690 वोट पाकर भी पीछे रह गए। सुभासपा के रामजी को 33,877 और कांग्रेस के अजीत प्रताप कुशावाहा को 19,834 वोट मिले।

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