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वाराणसी के हनुमान घाट पर कांची कामकोटि पीठ के अधिपति विजयेंद्र सरस्वती जी महराज ने पंचाग सभा की शुरुआत कराई।

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वाराणसी में काशी-कांची संगमम् चल रहा है। कांची कामकोटि के पीठाधीपति जगद्गुरु शंकराचार्य श्रीशंकर विजयेंद्र सरस्वती जी महाराज के नेतृत्व में आज हनुमान घाट पर पंचांग सभा का आयोजन हुआ। शंकराचार्य श्रीशंकर विजयेंद्र सरस्वती जी महाराज ने कहा कि पंचांग सभा की शुरुआत कांची मठ की परंपरा में पीठ के 65वें आचार्य सुदर्शन महादेवेंद्र सरस्वती जी ने 1877 में की थी। तभी से लगातार हर साल चातुर्मास्य पर पंचांग सभा किया जा रहा है।

वाराणसी में कांची कामकोटि पीठ में चल रही पंचांग सभा।

वाराणसी में कांची कामकोटि पीठ में चल रही पंचांग सभा।

पंचांग की होती हैं केवल 3 धारा

शंकराचार्य ने कहा कि तिथि, वार, योग, करण, नक्षत्र आदि पर विचार करना ही परंपरागत भारतीय कालदर्शक है। पंचाग की तीन धाराएं प्रथम प्रमुख हैं। जिसमें त्योहार, घटनाएं, ग्रहों का उदय-अस्त और शुभ मुहूर्त की जानकारी। आने वाले वर्षों के लिए तिथि, वार, योग, करण, नक्षत्र के विचार के लिए पंचाग सभा का आयोजन काशी में किया जा रहा है। इसमें 100 से ज्यादा विद्वान भाग ले रहे हैं।

इन स्टेट के विद्वानों की भागीदारी

शंकराचार्य ने बताया कि इस सभा में राष्ट्रीय स्तर पर मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब, काश्मीर, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश सहित नेपाल, श्रीलंका और मलेशिया से प्रकाशित होने वाले पंचांगों के विद्वान भी यहां आए हैं। शंकराचार्य ने कहा कि इस पंचाग कार्यक्रम के दो मूल बाते हैं। पहला यह कि अयन विचलन से पंचांग गणित में क्या-क्या बदलाव करना चाहिए। दूसरा अपने-अपने पंचांग गणित को गणना कर तुलनात्मक तरीके से प्रस्तुत करना चाहिए।

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