मुजफ्फर अली
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28 मई की शाम को सेक्टर-28 स्थित म्यूजियो कैमरा संग्रहालय में अलग सी कुछ चहल पहल थी। यहां पर आए कला प्रेमियों को एक खास आदमी का इंतजार था। देर शाम करीब सात बजे प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक और फैशन डिजाइनर मुजफ्फर अली संग्रहालय के हॉल में आए। मुजफ्फर अली ने हाल में ही प्रकाशित हुई अपनी आत्मकथा जिक्र के संबंध में मौजूद लोगों से चर्चा की। इस दौरान उनके जीवन के कई जाने अनजाने पहलू भी सामने आए।
कार्यक्रम में मुजफ्फर अली ने किताब में किए गए जिक्र में बताया कि अलीगढ़ उनकी सृजन यात्रा की रीढ़ की हड्डी है। ट्रेन से तीसरे दर्जे के डिब्बे से हाथ में बक्सा लेकर अलीगढ़ के प्लेटफार्म पर उतरे थे। बक्से पर लिखा था कि एमए जैदी। पिता ने शहर की दंगों की पृष्ठ भूमि ध्यान में रखते हुए कहा था कि ऐसा हो तो कह देना मेरा नाम मौरिस अल्बर्ट जैदी है। उन्होंने कहा कि अलीगढ़ पहुंच कर अहसास हुआ कि मैं कुछ भी नहीं था। वहां से सब कुछ मिला।
उन्होंने अपनी आत्मकथा के विषय में बताया कि इसमें वह लखनऊ के कोटवारा हाउस में बड़े होने की अपनी बचपन की यादों को उजागर करते हैं। अपने पिता राजा सैयद साजिद हुसैन अली के कारों व घोड़ों के लिए उनके साझा प्रेम को दर्शाते हैं। गर्मियों की छुट्टियों को याद करते हैं। नैनीताल, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में कविता के साथ स्थायी रोमांस, कोलकाता में एक विज्ञापन पेशेवर के रूप में उनके समय और मुंबई में एयर इंडिया के साथ काम करने के वर्षों का जिक्र किया है।
मुजफ्फर अली ने फिल्म निर्माण करियर, अपनी फिल्मों की ऑफ-कैमरा यात्रा और अपने कलाकारों के साथ संबंधों पर चर्चा की। संग्रहालय के निदेशक आदित्य आर्य ने बताया कि मुजफ्फर अली के साथ कला प्रेमियों का यह संवाद बेहद शानदार रहा। काफी सार्थक चर्चा रही।