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नारी शक्ति पुरस्कार लेती डॉ. माधुरी बड़थ्वाल
– फोटो : अमर उजाला फाइल फोटो

विस्तार

अमर उजाला से मेरी यादें उस समय से जुड़ी हैं, जब मैं बहुत छोटी थी। तभी से अमर उजाला की नियमित पाठक रही हूं। तब हम लैंसडौन कोटद्वार में रहते थे। उस वक्त शायद वहां मेरठ या बरेली से छपकर अखबार पहुंचता था। बाद में मैं जब रेडियो से जुड़ी तो अमर उजाला में समसामयिक विषयों पर छपने वाले  लेखों ने मुझे कई कार्यक्रमों को तैयार करने में मदद की।

उस वक्त पढ़ाई जारी रखने के साथ ही खाली वक्त में मैं आकाशवाणी नजीबाबाद के लिए संगीत कार्यक्रम तैयार करती थी। यहां से प्रसारित होने वाले ‘धरोहर’ कार्यक्रम के माध्यम से हम लोकगाथा, गीत, संगीत का प्रचार प्रसार करते थे। इस कार्यक्रम के लिए तैयार होने वाली सृजनात्मक सामग्री के लिए हम अमर उजाला में छपे लेखों की मदद लेते थे।

इस कार्यक्रम के बारे में एक बार वर्ष 2002 में एक लेख अमर उजाला में भी छपा था। एक बार का किस्सा याद आता है। अमर उजाला के किसी लेख मेंं मैंने देखा कि उसमें लिखा है, कविलास का मतलब होता है फूल। यह गलत था। कविलास का मतलब होता है कैलास पर्वत। तब मैंने अमर उजाला के दफ्तर में फोन कर संपादक से बात की। संपादक कौन थे, याद नहीं। लेकिन, उन्होंने मेरी बात को बहुत सहर्ष भाव से सुना और उसे स्वीकार किया।

 

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