दो दिन पहले सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट में करंट दौड़ने के बाद इसे लगाने वाली कंपनी कॉन्फिडेंट इंजीनियरिंग के अधिकारियों पर घोर लापरवाही के आरोप में गैर इरादतन हत्या की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जा चुका है। जल संस्थान व यूपीसीएल के इंजीनियरों को निलंबित किया जा चुका है।
सुरक्षा उपायों की भी चल भी जांच
सवाल उठ रहा है कि प्लांट में इस हादसे के पीछे मुख्य वजह क्या है। दो दिन से चमोली में ही निरीक्षण कर रहे सचिव पेयजल अरविंद सिंह ह्यांकी ने बताया कि प्लांट का निर्माण ठीक हुआ है। यहां सभी व्यवस्थाएं भी दुरुस्त थीं लेकिन प्लांट में प्रबंधन को लेकर लापरवाही हुई है।
सचिव पेयजल ने बताया कि कंपनी, जल संस्थान और यूपीसीएल तीनों के बीच समन्वय और प्रबंधन की चूक ही प्रथम दृष्टया हादसे की वजह लग रहा है। उन्होंने बताया कि फिलहाल प्लांट हादसे के सभी पहलुओं को देखा जा रहा है। यहां सुरक्षा उपायों की भी जांच चल रही है। प्लांट को दोबारा शुरू करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि फिलहाल हादसे के कारणों और निवारण पर काम हो रहा है। प्लांट दोबारा शुरू करने के लिए बाद में फैसला लिया जाएगा।
किसके स्तर पर क्या लापरवाही
जल संस्थान
– प्लांट का संचालन करने के साथ रखरखाव कराने की जिम्मेदारी नहीं निभाई।
– जिम्मेदार अधिकारी हादसे में पहली मौत के बावजूद चुप्पी साधे रखी।
– हादसे की तत्काल सूचना यूपीसीएल को भी नहीं दी गई।
– शॉर्ट सर्किट, पैनल फुंकने, केयर टेकर मौत की जानकारी के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं।
– सुपरवाइजर से सूचना मिलने के बावजूद अधिकारियों ने गंभीर नहीं बरती।
– समय से पैनल ठीक कराया जाता तो बच सकती थीं इतनी जानें।
यूपीसीएल
– बिजलीकर्मी ने जंपर जोड़ा लेकिन इसके उड़ने का कारण तलाशने की जरूरत नहीं समझी।
– प्लांट के भीतर विद्युत सुरक्षा उपायों की अनदेखी की गई।
एसटीपी का डिजाइन आईआईटी रुड़की से अप्रूव्ड
नमामि गंगे अभियान में उत्तराखंड में तकनीकी संस्था के तौर पर आईआईटी रुड़की अपनी सेवाएं दे रहा है। सचिव पेयजल अरविंद सिंह ह्यांकी ने कहा कि प्लांट के डिजाइन, इसकी चारों ओर के टिनशेड की बाउंड्री में कोई परेशानी नहीं है। यह प्लांट आईआईटी रुड़की से अप्रूव्ड है। प्लांट के टिनशेड को लेकर सवाल बेवजह हैं।
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2021 में शुरू हुआ था प्लांट, 10 साल करना था रखरखाव
प्लांट निर्माता कंपनी ने 2021 में इसे तैयार कर दिया था। उसके बाद संचालन के लिए इसे जल संस्थान के हवाले कर दिया गया था। जिस कॉन्फिडेंट इंजीनियरिंग कंपनी ने इसका निर्माण किया है, उसे कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक 10 साल तक इसका रखरखाव करना था। कंपनी से रखरखाव करवाने की जिम्मेदारी जल संस्थान की थी।