ग्राम सभा की शक्ति कम करने पर जताई आपत्ति
हेमंत सोरेन ने पीएम को लिखा है कि एक ऐसे राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में जहां 32 वनवासी समुदाय सौहार्दपूर्ण ढंग से प्रकृति के साथ जीवन जीते हैं। जहां पेड़ों की पूजा और रक्षा की जाती है। ये मेरा कर्तव्य है कि मैं आपकी जानकारी में उस वन संरक्षण नियमावली को लाऊं जिसमें गैर-वानिकी उद्देशों के लिए वनभूमि का उपयोग करने से पहले ग्रामसभा की सहमति की अनिवार्यता को खत्म कर दिया गया है। सीएम ने कहा कि वनवासी पेड़ों को अपने पूर्वजों के रूप में मानते हैं। यदि उनकी सहमति के बिना पेड़ काटे गए तो ये वनों पर उनकी स्वामित्व की भावना पर हमले जैसा होगा।
वनवासियों का परंपरागत अधिकार छिन जाएगा!
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि भारत में तकरीबन 20 करोड़ लोग अपनी प्राथमिक आजीविका के लिए वनों पर निर्भर हैं। करीब 10 करोड़ लोग वन के रूप में पहचानी गई भूमि पर निवास करते हैं। केंद्र सरकार द्वारा लाया गया वन संरक्षण कानून-2022 उन वनवासियों के अधिकारों को खत्म कर देगा जिन्होंने पीढ़ियों से जंगल को ही अपना घर माना है। हालांकि उनके अधिकारों का कहीं दस्तावेजीकरण नहीं किया गया। सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि विकास के नाम पर आदिवासी-वनवासी की परंपरागत जमीनें छीनी जा सकती हैं।
मुख्यमंत्री से नियम में बदलाव करने की मांग की गई
मुख्यमंत्री ने पीएम से कहा कि मेरी आपसे विनती है कि आप एक कदम आगे बढ़ाते हुए इसका समाधान निकालने का प्रयास करें। प्रगति की आड़ में आदिवासी महिला, पुरुष और बच्चों की आवाज ना दबाई जाए। कानून समावेशी होना चाहिए।