बीते सोमवार को कंपनी ने अपने 1,05,000 कर्मचारियों के वर्कफोर्स में से स्वीडन में 1400 कर्मचारियों को घटाने की घोषणा की थी। हालांकि कंपनी ने अभी तक इस बात को स्पष्ट नहीं किया है कि किस क्षेत्र में सबसे ज्यादा छंटनी की जाएंगी। वहीं, एनालिस्टों का मानना है कि फर्म नॉर्थ अमेरिका में सबसे ज्यादा छंटनियां कर सकती है। वहीं, उभरते मार्केट्स जैसे भारत आदि में इसका असर सबसे कम देखने को मिल सकता है।
Ericsson की ओर से दिसंबर में घोषणा की गई थी कि वह अपने खर्चे को 7300 करोड़ रुपये तक घटाने की योजना पर प्लान कर रही है। यह कॉस्ट कटिंग कंपनी 2023 के अंत तक जारी रखेगी क्योंकि ग्लोबल लेवल पर डिमांड घटती जा रही है। इसका सीधा कारण महामारी से जोड़कर देखा जा रहा है। महामारी के दौरान जहां टेलीकॉम इक्विपमेंट्स की डिमांड एकदम से आसमान छूने लगी थी, ऐसे में अब डिमांड में लगातार कमी आती जा रही है। इसलिए कंपनियां छंटनी की ओर रुख कर रही हैं।
इससे पहले एरिक्सन के चीफ फाइनेंशिअल ऑफिसर कार्ल मेलेंडर ने रॉयटर्स को बताया था कि कॉस्ट कटिंग की प्रक्रिया में कंसल्टेंट्स की संख्या कम की जाएगी, रीयल एस्टेट और एम्प्लोयी हेड काउंट यानि कि कर्मचारियों की संख्या भी घटाई जाएगी। इससे पहले Microsoft, Meta और Alphabet, Google भी हजारों की संख्या में कर्मचारियों को वर्कफोर्स से कम कर चुकी हैं।