कार्यक्रम का आयोजन पुणे इंटरनेशनल सेंटर की ओर से किया गया था जो कि एक पॉलिसी रिसर्च थिंक टैंक है। साथ में इसमें बाह्य मामलों के मंत्रालय का सहयोग भी शामिल था। रिपोर्ट के मुताबिक, मूर्ति ने कहा, ‘हमने 300 सालों में पहली बार थोड़ी सफलता चखी है। हमें इसी से संतुष्टि नहीं करनी है, बल्कि बड़ी सफलता की ओर बढ़ना है। उन्होंने कहा कि जो भी युवाओं को यह बताता है कि काम करने के लिए कोई सिद्धांत जरूरी नहीं होते हैं, या परिश्रम करना जरूरी नहीं है या आलस अच्छा है, ऐसा व्यक्ति तुम्हारा शुभचिंतक नहीं हो सकता है’।
इसके आगे उन्होंने परिश्रम यानि कि हार्ड वर्क पर भी जोर देकर कहा और संबोधित किया कि देश का निर्माण युवाओं के हाथों में ही है। ये मौका उनको ऐसे ही नहीं गंवाना चाहिए। उन्हें अवसरों पर फिर से विचार करने की जरूरत है। उन्हें दोबारा से आंकने की जरूरत है। और इस तरह के मौके हर पीढी़ के पास नहीं आते हैं। इसके साथ में उन्होंने उन देशों के उदाहरण भी दिए जिन्होंने पिछले कुछ समय में विकास की दिशा में बेजोड़ प्रगति की है। साथ ही मूर्ति ने इस बात पर भी जोर दिया कि संस्कृति को बनाए रखना और समृद्ध करना भी विकास के लिए उतना ही जरूरी है।
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