कोयंबटूर, 10 अप्रैल 2025: तमिलनाडु के कोयंबटूर जिले में एक निजी स्कूल में मासिक धर्म (पीरियड्स) के दौरान 8वीं कक्षा की एक छात्रा को क्लासरूम से बाहर बैठाकर परीक्षा दिलवाने का शर्मनाक मामला सामने आया है। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है, जिसके बाद लोगों में गुस्सा और चिंता देखी जा रही है। कोयंबटूर जिला प्रशासन ने मामले की जांच शुरू कर दी है और स्कूल प्रबंधन के खिलाफ सख्त कार्रवाई की बात कही है।
क्या है पूरा मामला?
घटना कोयंबटूर जिले के किनाथुकदवु तालुक में स्वामी चिद्भवंदा मैट्रिक हायर सेकेंडरी स्कूल (Swamy Chidbhavanda Matric Higher Secondary School) की है। 8वीं कक्षा में पढ़ने वाली एक छात्रा, जो अरुंथथियार समुदाय (Arunthathiar community) से ताल्लुक रखती है, ने हाल ही में मासिक धर्म शुरू होने की बात स्कूल को बताई। इसके बाद स्कूल प्रबंधन ने उसे 7 अप्रैल को साइंस की परीक्षा और 9 अप्रैल को सोशल साइंस की परीक्षा के दौरान क्लासरूम से बाहर बैठाकर पेपर देने के लिए मजबूर किया।
छात्रा ने इस बारे में अपनी मां को बताया, जिसके बाद मां ने स्कूल पहुंचकर इस घटना का वीडियो बनाया। वायरल वीडियो में मां अपनी बेटी से पूछती है, “किसने तुम्हें बाहर बैठाया?” इस पर बच्ची जवाब देती है, “प्रिंसिपल ने।” मां ने सवाल किया, “क्या सिर्फ पीरियड्स होने की वजह से बच्ची को क्लास से बाहर बैठाना ठीक है?” इस वीडियो ने सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया को जन्म दिया है।
सोशल मीडिया पर गुस्सा
एक्स पर इस घटना को लेकर लोगों ने स्कूल प्रबंधन और प्रिंसिपल की कड़ी निंदा की है। यूजर्स ने इस घटना को शर्मनाक और भेदभावपूर्ण बताते हुए प्रिंसिपल को सस्पेंड करने की मांग की।
जिला प्रशासन ने शुरू की जांच
कोयंबटूर जिला कलेक्टर पवनकुमार जी गिरियप्पनवर ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए जांच के आदेश दिए हैं। उन्होंने कहा, “कोयंबटूर ग्रामीण पुलिस ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है। मैट्रिकुलेशन स्कूल के इंस्पेक्टर को जिला प्रशासन को विस्तृत रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया है। स्कूल प्रबंधन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।” यह भी बताया गया कि छात्रा अनुसूचित जाति (Scheduled Caste) से है, जिसके चलते इस घटना को भेदभाव के रूप में भी देखा जा रहा है।
मासिक धर्म को लेकर जागरूकता की कमी
यह घटना भारत में मासिक धर्म को लेकर गहरे जड़े सामाजिक कलंक और जागरूकता की कमी को उजागर करती है। डीडब्ल्यू की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 71% किशोर लड़कियां अपने पहले मासिक धर्म से पहले इसके बारे में कुछ नहीं जानतीं। इसके अलावा, 23 मिलियन लड़कियां हर साल स्कूल छोड़ देती हैं, क्योंकि स्कूलों में मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन की सुविधाएं नहीं होतीं।
विशेषज्ञों की राय
मासिक धर्म स्वच्छता पर काम करने वाली संस्था ‘एक्शन इंडिया’ की कैंपेन कोऑर्डिनेटर सुलेखा सिंह ने कहा, “लड़कों को भी इस प्राकृतिक प्रक्रिया के बारे में जागरूक करना जरूरी है।” वहीं, गूंज संस्था के संस्थापक अंशु गुप्ता ने कहा, “मासिक धर्म स्वच्छता को लेकर पहुंच, सामर्थ्य और जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है।”
यह घटना न केवल स्कूल प्रबंधन की संवेदनहीनता को दर्शाती है, बल्कि समाज में मासिक धर्म को लेकर व्याप्त रूढ़ियों को भी उजागर करती है। लोगों ने मांग की है कि स्कूल प्रबंधन और प्रिंसिपल के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों। साथ ही, मासिक धर्म को लेकर जागरूकता फैलाने और स्कूलों में बेहतर सुविधाएं मुहैया कराने की जरूरत पर बल दिया जा रहा है।
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