मथुरा: उत्तर भारत में दक्षिण भारतीय शैली के विशालतम श्री रंगनाथ मंदिर में चल रहे ब्रह्मोत्सव में भव्य आतिशबाजी का आयोजन किया गया. सोने के बने घोड़े पर विराजमान भगवान रंगनाथ स्वर्ण आभूषणों से सजे रहे. उनके दर्शन कर भक्त खुश हो गए. बेशकीमती आभूषण पहने भगवान रंगनाथ के एक हाथ में चांदी से बना भाला सुशोभित था तो दूसरे हाथ में घोड़े की लगाम, पीठ पर ढाल,कमर में कसी मूठदार तलवार और रत्न जड़ित जूतियां पहने भगवान की छवि नयनाभिराम थी. चैत्र कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि पर देर शाम भगवान रंगनाथ की सवारी स्वर्ण निर्मित घोड़े पर विराजमान होकर निकली. बेशकीमती आभूषण पहने भगवान रंगनाथ के एक हाथ में चांदी से बना भाला सुशोभित था.
स्वर्ण निर्मित घोड़े पर विराजमान भगवान की सवारी मंदिर से निकलकर नगर भ्रमण करते हुए बड़ा बगीचा पहुंची. जहां मुख्य द्वार पर सवारी के पहुंचते ही आतिशबाजी का रोमांचकारी प्रदर्शन किया गया. आतिशबाज अपने हुनर का प्रदर्शन कर रहे थे. करीब एक घंटे तक चली आतिशबाजी में एक से बढ़कर एक पटाखों की रोशनी से लोग आनंदित हो उठे. आतिशबाजी में सबसे ज्यादा आकर्षक किला, हनुमान जी, मोर, श्री राधे राधे और गज ग्राह युद्ध लीला की आतिशबाजी थी. आतिशबाजी खत्म होने के बाद भगवान रंगनाथ की सवारी फिर से मंदिर पहुंची जहां पश्चिम द्वार पर पहुंचने पर परकाल स्वामी भील लीला का आयोजन किया गया. यहां हजारों भक्तों की मौजूदगी में परकाल स्वामी ने भगवान को लूटा. भगवान को लूटने के दौरान अंत में परकाल स्वामी को भगवान ने अपने दिव्य स्वरूप में दर्शन दिए. भगवान के दिव्य स्वरूप में दर्शन कर परकाल स्वामी उनसे क्षमा मांगने लगे और शरणागत हो गए. कथानुसार कालांतर में परकाल स्वामी चोल देश के राजा के सेनापति थे.दक्षिण भारतीय शैली के विशालतम श्री रंगनाथ मंदिर में चल रहे ब्रह्मोत्सव
एक बार परकाल स्वामी ने संकल्प लिया कि एक वर्ष तक प्रतिदिन 1 हजार वैष्णव संतों को भोजन कराकर उनके श्री पादतीर्थ ( चरण जल) ग्रहण करूंगा. इस संकल्प के साथ ही परकाल स्वामी ने वैष्णव संतों को भोजन कराना शुरू कर दिया. परकाल स्वामी का संकल्प पूरा होने के अंतिम समय में उनको धन की कमी आने लगी. परकाल स्वामी ने संकल्प को पूरा करने के लिए भीलों के साथ मिलकर लूटपाट करना शुरू कर दिया. एक दिन भगवान परीक्षा लेने के लिए भेष बदलकर आभूषण धारण कर उस रास्ते से निकले. परकाल स्वामी ने भीलों के साथ मिलकर भगवान के साथ लूटपाट शुरू कर दी. इस दौरान भगवान ने एक आभूषण पैर के नीचे दबा दिया.
एक बार परकाल स्वामी ने संकल्प लिया कि एक वर्ष तक प्रतिदिन 1 हजार वैष्णव संतों को भोजन कराकर उनके श्री पादतीर्थ ( चरण जल) ग्रहण करूंगा. इस संकल्प के साथ ही परकाल स्वामी ने वैष्णव संतों को भोजन कराना शुरू कर दिया. परकाल स्वामी का संकल्प पूरा होने के अंतिम समय में उनको धन की कमी आने लगी. परकाल स्वामी ने संकल्प को पूरा करने के लिए भीलों के साथ मिलकर लूटपाट करना शुरू कर दिया. एक दिन भगवान परीक्षा लेने के लिए भेष बदलकर आभूषण धारण कर उस रास्ते से निकले. परकाल स्वामी ने भीलों के साथ मिलकर भगवान के साथ लूटपाट शुरू कर दी. इस दौरान भगवान ने एक आभूषण पैर के नीचे दबा दिया.
परकाल स्वामी ने भगवान को पैर के नीचे आभूषण छुपाते देख लिया. इसके बाद वह उस आभूषण को लूटने के लिए पैरों में झुके तभी भगवान ने अपना दिव्य स्वरूप उन्हें दिखा दिया. प्रभु को देख परकाल स्वामी क्षमा मांगने लगे और उनके शरणागत हो गए. इसी लीला को रंगनाथ मंदिर में भील लीला कहा जाता है.