बता दें कि, Tata Nano, रतन टाटा का ड्रीम प्रोजेक्ट था और वो इस कार को लेकर काफी संजीदा थें। उनका सपना था कि देश के हर तबके के लोग कार की सवारी का लुत्फ ले सकें और इसी सपने को एक आकार देने के लिए उनकी कंपनी ने साल 2008 में दुनिया की सबसे सस्ती कार के तौर पर Tata Nano को लॉन्च किया था। जिस वक्त इस कार को बाजार में उतारा गया उस वक्त इसे ‘लखटकिया’ नाम भी दिया गया, क्योंकि इसे केवल 100,000 रुपये की इंट्रोडक्ट्री प्राइस में लॉन्च किया गया था।
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हालांकि शुरुआत में इस कार ने शानदार प्रदर्शन किया लेकिन 10 सालों के बाद इस छोटी कार सफर खत्म हो गया और इस कार को आधिकारिक तौर पर डिस्कंटीन्यू कर दिया गया। इसका सबसे प्रमुख कारण इसकी बिक्री थी, भले ही कम कीमत की होने के चलते इस कार ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरी, लेकिन स्पेस और सेफ़्टी इत्यादि के चलते इस कार को लोगों ने बहुत ज्यादा पसंद नहीं किया और जिसका नतीजा था इसकी बिक्री लगातार कम होती गई।
Ratan Tata arrives at Taj Mumbai in a Nano sitting in front seat with his driver. No security either. Exemplary simplicity personified. 💯👏🏾 pic.twitter.com/XAbyLLoCpt
— Maya (@Sharanyashettyy) May 17, 2022
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शुरुआत में 100,000 नैनो कारों के पहले बैच को लॉटरी के माध्यम से बेचा गया था, जिसकी मांग आपूर्ति से अधिक थी। लेकिन बाद के वर्षों में मांग घटती रही। 2012 में रतन टाटा ने भी स्वीकार किया कि नैनो के लॉन्च के साथ गलतियाँ की गई थीं। हालांकि, Tata Nano प्रोजेक्ट हमेशा से रतन टाटा के दिल के करीब रहा और उन्होंने अक्सर इसे “सभी भारतीयों के लिए एक किफायती कार” के रूप में बताया भी था। लेकिन नैनो में उनकी सवारी ने कई लोगों को चौंका दिया, लोगों का कहना है कि, वो आदमी जो जगुआर और लैंड रोवर्स बनाने वाली फर्म का भी मालिक है, उनकी सादगी काबिले तारीफ है।